दोस्तों आपने टीवी पर प्रसारित होने वाले सीरियल लापतागंज, मे आई कमिंग मैडम, जीजाजी छत पर हैं और नीली छतरीवाले जरुर देखे होंगे और इन सीरियल में अभिनय करने वाली एक अद्कारा का अभिनय आपको बहुत पसंद आया होगा . आज जिन्हें घर -घर में लोग पहचानते है कभी नीबू पानी पी कर करती थी गुजारा .हम बात कर रहे है सोमा राठौड़ की जिसने इस मुकाम तक पहुंचने के लिए अपने जीवन में काफी संघर्ष किया है . अपने मोटापे की वजह से कई बार करना पड़ा रिजेक्शन का सामना . आज सोमा जहाँ है वंहा तक का उनका सफर बेहद ही कठिन रहा है . एक समय था जब सोमा काम के लिए दर दर भटकती थी लेकिन आज बन गयी है करोड़ो की मालकिन .कबीर सिंह की नौकरानी असल ज़िन्दगी में है सुपर हॉट,सारे कपडे उतार कराया था फोटोशूट
100 रुपए में गुजारती थीं दिन
संघर्ष के दिन बहुत कठिन थे। मेरे पास पैसे नहीं होते थे। मैं 100 रुपए लेकर घर से निकलती थी। उस 100 रुपए में खाना-पीना हो जाता था, तब किराए तक का पैसा नहीं बचता था। इस तरह काम की तलाश में भूखी-प्यासी पूरे दिन अंधेरी इलाके में भटकती रहती थी। घर से सुबह निकलकर बोरीवली स्टेशन जाती थी। वहां से ट्रेन पकड़कर अंधेरी जाती थी। अंधेरी में तीन रुपए का नींबू-पानी पीती थी। फिर पूरे दिन यहां फोटो, वहां ऑडिशन या कहीं पर मीटिंग के लिए भटकती थी। इस तरह वहां से रात 7-8 बजे निकलती थी। अंधेरी स्टेशन आकर फिर तीन रुपए का पानी पीकर घर आ जाती थी। घर आकर खाना खाती थी।
सही को-ऑडिनेटर मिले
संघर्ष के दिनों में तो अपना आत्मविश्वास ही सहारा रहा। बाकी तो एक फ्रेंड नईम शेख थे, जिन्होंने अच्छा सजेशन दिया। वे शौकिया तौर पर क्राइम पेट्रोल, सीआईडी जैसे शोज करते थे। डेली सोप नहीं करते, क्योंकि उनकी परफ्यूम की फैक्ट्री थी। वे वहां पर ज्यादा बिजी रहते थे। उन्होंने मुझे बहुत गाइड किया। उनकी वजह से सही लोगों का कांटेक्ट मिला और सही को-ऑडिनेटर मिले। कभी कहीं पर जाने में घबराहट होती थी, तब साथ में भी चले जाते थे। कभी अंधेरी वगैरह में मिल जाते थे, तब खाना वगैरह भी खिला देते थे। ऐसा करके काफी हेल्प की।एक्ट्रेस रेखा से लेकर दीपिका तक है दिवानी इन साड़ियों की, हर ख़ास मौके पर पहनती है केवल इन्ही राज्यों की साड़ियाँ
हेल्दी कहकर रोल देने से किया इंकार
स्ट्रगल के दिनों में कई बार होता था कि लोग बोलते थे कि आप थोड़ा मोटे हैं, हमें पतले लोग चाहिए। कई बार कहते थे कि हमें बहुत ज्यादा मोटे चाहिए। आप तो कम मोटे हैं। मैं न तो मोटे में आती थी और न ही पतले में आती थी। इस तरह की बातें तो हमें बहुत बार झेलनी पड़ी।
हेल्दी युवतियों और युवाओं से क्या कहना चाहेंगी?
मैं उन सबसे यह कहूंगी कि अगर आपको ऐसा जतलाया जाता है, जिससे आपको लगता है कि दुनिया में आपके लिए कोई जगह नहीं है, तब आप बिल्कुल भी ऐसा न सोचें। बल्कि आप ऐसा सोचें कि दूसरों से आपको जगह ज्यादा लगती है, इसलिए इस दुनिया में आपके लिए जगह ज्यादा है। आप मजबूती से रहें और बेफ्रिक रहें। दुनिया का क्या है, दुनिया तो बोलती रहेगी। उनका मुंह हम बंद नहीं कर सकते, लेकिन आप बिंदास होकर अपनी लाइफ को जिएं।
हेल्दी होने की वजह से झेला संघर्ष
देखिए, हमारे जैसे जो हेल्दी होते हैं, उनके दोस्त-यार, रिश्तेदार, स्कूल वगैरह के लोग बोल देते हैं कि ऐ मोटी इधर आ। अगर जरा-सा भी मोटा दिख गए, तब कोई भी उठकर सीधे चला आता है और कहता है कि चावल मत खाया करो, थोड़ा वॉक किया करो, थोड़ा सलाद खाया करो। बिना पूछे एडवाइज देना शुरू कर देते हैं। ऐसा लगता है कि हम तो एडवाइज लेने के लिए पैदा हुए हैं। लगता है कि हर किसी को अधिकार है कि हमें एडवाइज दे, क्योंकि हम मोटे हैं। लोगों का यह एटीट्यूट हमारे जैसे लोगों को बहुत तकलीफ देता है। शॉपिंग करने जाओ, तब हमारे साइज के कपड़े नहीं मिलते। आखिर क्यों नहीं बनाए जाते हमारे साइज के कपड़े। जैसे और लोग हैं, वैसे हम भी तो हैं। ये सारी चीजें बहुत दुख देने वाली बात होती हैं। हमें ऐसा जताया जाता है कि आपके लिए दुनिया है ही नहीं। ऐसी बातों का सामना हमें हर दिन करना पड़ता है। मैं तो बहुत हिम्मतवाली हूं, इसलिए सोचा कि मैं किसी को अपना मजाक उड़ाने नहीं दूंगी। मैंने अपने मोटापे का मजाक उड़ाना खुद ही सीखा। मैंने सोचा कि मैं खुद ही खुद का मजाक उड़ाऊंगी, तब तुम क्या कर लोगे। मेरा तो यह एटीट्यूट रहा, लेकिन बहुत सारे लोग इमोशनल होते हैं। वे यह सारी चीजें नहीं झेल पाते, तब लोगों से वे कटने लगते हैं। अकेले रहने लग जाते हैं, उनमें हीन भावना आ जाती है। वे डिप्रेशन में चले जाते हैं और बीमार पड़ जाते हैं। इस तरह की चीजें हमारे जैसे को झेलनी पड़ती है और इसका किसी को अंदाजा ही नहीं होता।
इंडस्ट्री की मदर बनना चाहती हैं सोमा
मैं फिल्म तो हमेशा से करना ही चाहती थी। मुझे इंडस्ट्री में जो काम करना है, वह इंडस्ट्री की मदर बनना चाहती हूं। इंडस्ट्री में जो भी फिल्म बने, उसमें मदर की कास्टिंग हो, तब सबकी जुबान पर मेरा ही नाम आए कि सोमा राठौड़ को मदर बनाना है। फिर तो सलमान खान हों या शाहरुख खान की फिल्म हो। आजकल के हीरो-हीरोइन कोई भी बनें, पर मदर मैं ही बनूं। यह मेरा सपना है। अब ज्यादातर फिल्म ही करना चाहती हूं, क्योंकि 10-12 साल सीरियल कर चुकी हूं। वह थोड़ा-सा हैक्टिक हो जाता है। अपने रोल को लेकर थोड़ा एक्सपेरीमेंट करना चाहती हूं। अब नेगेटिव, इमोशनल और स्ट्रांग कैरेक्टर भी करना चाह रही हूं। चाहती हूं कि मेरा अलग शेड्स भी लोग देख पाएं बाकी कॉमेडी तो हमेशा करती रहूं, इससे हमेशा हंसाना चाहती हूं। मैं चाहती हूं कि रहूं या न रहूं इस दुनिया में, मेरा नाम जब भी लिया जाए, उससे पहले लोगों के चेहरे पर मुस्कान हो।
गुजरात से ऑफर नहीं हुआ कोई रोल
ऐसा है कि गुजरात के ज्यादातर लोग जानते ही नहीं हैं कि मैं गुजराती हूं। लोगों को लगता है कि तारक मेहता… के जो आर्टिस्ट हैं, वे ही गुजराती हैं। मुझे कुछ लोग उत्तर प्रदेश, कुछ बंगाली समझते हैं, पर मैं गुजराती हूं। यही वजह है कि ऐसा कोई ऑफर मुझे गुजरात से नहीं आया। यह मेरे लिए माइनस प्वाइंट रहा। मैं गुजरात में कच्छ-भुज स्थित माधवपुर गांव से बिलॉन्ग करती हूं। वैसे तो व्यस्तता के चलते गुजरात आना-जाना ज्यादा होता नहीं है, पर मेरे कई रिश्तेदार वहां पर रहते हैं।