आप सभी ने बहुत से झगडे देखे होंगे पर सबसे ज्यादा झगडे मकान मालिक और किरायेदारों के मध्य होते है दोनों में जब जरूरत से ज्यादा विवाद बढ़ जाता है तो मजबूरन लोग कोर्ट का दरवाजा खटखटाते है और जब तक इसका फैसला आता है तब तक मकान मालिक अपनी ही संपत्ति से दूर रहता है जब फैसला आता है तब जाकर मकान मालिक अपनी संपत्ति के नजदीक पहुँच पाता है ऐसे में स्वयं मालिक होते हुए परेशानियों का सामना करता है इसके मद्देनज़र प्रॉपर्टी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केयरटेकर के दावे के संबंध में एक फैसला किया । सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसले सुनाया कि एक केयरटेकर या नौकर लंबे समय तक कब्जे के बावजूद संपत्ति पर कभी दावा नहीं कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब मालिक कहेगा तो उस (केयरटेकर या नौकर) को मकान या प्रॉपर्टी को खाली करना पड़ेगा।
आपको बता दें कि जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस अभय ओका की पीठ ने यह बात ट्रायल जज के एक आदेश के खिलाफ दायर एक अपील पर सुनवाई करने के दौरान कहा। वहीं ट्रायल कोर्ट के द्वारा दिए गए आदेश की पुष्टि हाई कोर्ट ने भी की थी। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की अपीलकर्ता (हिमालय विनट्रेड प्राइवेट लिमिटेड) ने एक संपत्ति खरीदने के लिए मालिक के साथ एग्रीमेंट किया था। सेल डीड (बिक्री विलेख) के माध्यम से अपीलकर्ता का उस संपत्ति के ऊपर स्वामित्व का अधिकार हो गया। सुप्रीम कोर्ट के सामने प्रतिवादी (मोहम्मद जाहिद व अन्य) को उस संपत्ति के पूर्व मालिक द्वारा एक केयरटेकर के तौर पर नियुक्त किया गया था। वहीं पहले मालिक की तरफ से प्रतिवादी को उस संपत्ति पर निवास करने की अनुमति दी गई थी।
वहीं प्रतिवादी ने एक मुकदमा दायर किया, जिसने इस बात का दावा किया गया था कि केयरटेकर के तौर पर उसका उस संपत्ति पर वैध कब्जा है और वह संपत्ति के एकमात्र मालिक है। उसने उसे संपत्ति के बेदखल करने से रोकने की के लिए स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की। वहीं इस मामले में सबसे दिलचस्प बात यह रही है कि उसके अनुसार निचली अदालत और हाईकोर्ट ने मकान मालिक की याचिका पर सुनवाई करने से मना कर दिया था। जिस याचिका में केयरटेकर ने खुद को संपत्ति परिसर से खाली नहीं कराने की गुहार लगाई थी, कोर्ट के द्वारा उस याचिका पर आगे की कार्यवाही करने से इंकार कर दिया गया था।आपको बता दें कि ट्रायल जज ने इसे विवाद विषय-वस्तु और इसकी जांच सिर्फ मालिक के कहने पर लिखित बयान दर्ज किए जाने के बाद ही की जा सकती है, इसको आधार मानते हुए आवेदन को खारिज कर दिया था। निचली अदालत ने कहा था कि यह आदेश VII नियम 11, सिविल प्रक्रिया संहिता के दायरे में नहीं है। निचली अदालत के द्वारा दिए गए उस आदेश की पुष्टि, हाई कोर्ट के द्वारा भी की गई थी।
आपको बता दें कि सीपीसी के आदेश-7 नियम 11 (डी) में यह प्रावधान है कि वाद पत्र में दिया गया बयान अगर किसी भी कानून द्वारा वर्जित लगता है तो ऐसे स्थिति में वाद खारिज कर दिया जाएगा। वहीं अब निचली अदालत के इस आदेश को जस्टिस अजय रस्तोगी अध्यक्षता वाली पीठ ने रद्द कर दिया है। उन्होंने कहा है कि इस मामले में साफ तौर पर ट्रायल कोर्ट की गलती है। जस्टिस अजय रस्तोगी ने यह कहा है कि केयरटेकर/नौकर का अगर लंबे समय तक संपत्ति पर कब्जा हो तो इसके बावजूद भी कभी भी संपत्ति में वह अधिकार हासिल नहीं कर सकता है। जस्टिस अजय रस्तोगी ने कहा कि जहां तक प्रतिकूल कब्जे की दलील का संबंध है, मालिक के कहने पर केयरटेकर/नौकर को तुरंत कब्जा देना पड़ेगा।