मित्रों वैसे तो आप सभी भलीभांति अवगत ही होगे कि धारा 370 व 35A की आंड़ में हुये अत्याचारों पर बनी फिल्म द कश्मीर फाइल्स मौजूदा समय में धूम मचा रही है। दर्शकों द्वारा इस फिल्म को काफी पसन्द किया जा रहा है। हालाकि ये बात अलग है कि द कश्मीर फाइल्स फिल्म आते ही कई विरोधी पार्टियों की नींदे उड़ती हुई नजर आ रही है, क्योंकि इस फिल्म को दर्शकों के सामने न आने का हर संभव प्रयास किया गया यहां तक कि इस फिल्म को विरोध भी किया गया। इस फिल्म से वो सच्चाई सबके सामने आ चुकी है जिसे सभी लोग अनजान थे। आपको बता दें कि 32 सालों तक कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और पलायन के क्रूरता से भरे किस्से को एक आवरण में कैद रखा गया। निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की फिल्म द कश्मीर फाइल्स ने कश्मीरी पंडितों की अमिट पीड़ा को पर्दे पर उतार कर देश में एक बहस छेड़ दी है।फ़िल्म हिट होते ही होने लगा कश्मीरी पंडितों के हत्यारों का हिसाब,यासीन मलिक और बिट्टा कराटे पर टूटा कहर
आपको बता दें कि फिल्म द कश्मीर फाइल्स की रिलीज के साथ ही पाकिस्तान समर्थक अलगाववादियों और आतंकवादियों की भी चर्चा की जाने लगी है, जो लंबे समय तक सरकारों के साथ गलबहियां करते नजर आ रहे थे, भारत के खिलाफ जहर उगलने वाले ऐसे ही एक अलगाववादी और आतंकवादी यासीन मलिक का नाम भी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा अप्रत्यक्ष तौर पर लिए जाने के बाद चर्चा में आ गया है। लोकसभा में निर्मला सीतारमण ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि ‘द कश्मीर फाइल्स के बारे में बात करते समय उस समय की सच्चाई को याद करना चाहिए कि जब हिन्दुओं पर इतना कुछ घट रहा था, तो, वे इससे कैसे निकले, कश्मीरी पंडितों के साथ इतनी ज्यादतियां हुई हैं कि मैं उसे शब्दों में बयान तक नहीं कर सकती, और, जब से कश्मीरी पंडितों का नरसंहार और पलायन हुआ, तब से ही इसे नकारने की प्रथा चल गई, कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से यह बात कही गई कि कश्मीरी पंडितों ने खुद अपनी मर्जी से और दिल्ली में कुछ फायदा उठाने के लिए पलायन किया, कांग्रेस का मानना है कि ये अलगाववादियों और भारत समर्थक लोगों के बीच का झगड़ा था, निर्मला सीतारमण ने कहा कि ‘कश्मीरी पंडितों को जब ऐसी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था, जम्मू कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार थी, जिसमें कांग्रेस पार्टी शामिल थी, तब के मुख्यमंत्री हिंदुओं को उनके नसीब पर छोड़कर विदेश चले गए, कश्मीरी पंडितों की हत्या, महिलाओं के साथ रेप और पलायन पर विपक्षी पार्टी के ट्विटर हैंडल से कही गई बातें सच्चाई को नकारने का उनका इरादा बयां करती हैं, कांग्रेस पार्टी को जवाब देना चाहिए कि एक अलगाववादी, जिसने स्वीकार किया था कि उसने भारतीय वायु सेना के एक अधिकारी को मार डाला था, को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री की ओर से आमंत्रित किया गया था और उन्होंने उसके साथ हाथ मिलाया।
आपकी जानकारी के लिये बता दें कि कश्मीर को भारत से आजाद कराने का नारा बहुत पुराना था लेकिन, इसके लिए भारत के खिलाफ पहली सशस्त्र जंग कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकी संगठन जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट यानी जेकेएलएफ ने छेड़ी थी, पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी संगठन जेकेएलएफ के तमाम आतंकवादियों को सीमा पार पाकिस्तान में ही हथियारों समेत तमाम प्रशिक्षण मिले थे, यासीन मलिक इसी आतंकी संगठन जेकेएलएफ का चीफ था, यासीन मलिक के इशारे पर ही 1987 से लेकर 1994 तक जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा मिला, जेकेएलएफ के आतंकियों ने ही कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और पलायन को अंजाम दिया, 1987 के विधानसभा चुनाव में धांधली के आरोप लगाकर कश्मीर की फिजा बिगाड़नी शुरू कर दी गई, जिसके बाद यासीन मलिक ने मजहब के नाम पर मुस्लिम युवाओं के दिमाग में जहर भरकर उन्हें हथियार उठाने के लिए ब्रेनवॉश किया, कहा जा सकता है कि इन्हीं अलगाववादी ताकतों के आगे झुककर तत्कालीन मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला ने कई आतंकियों को जेल से रिहा किया था, जिसके बाद कश्मीर में कत्लेआम मचा।फ़िल्म रिलीज होते ही कश्मीरी पंडितों को तड़पाने वाले यासीन मलिक पर टूटा कहर,आरोप हुआ तय
तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी का अपहरण कर खूंखार आतंकवादियों को रिहा करवाने के पीछे भी जेकेएलएफ का यासीन मलिक ही चेहरा था, कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और पलायन को अंजाम देने वाले जेकेएलएफ ने सरकारी कर्मचारियों से लेकर भारत समर्थक हर वर्ग के लोगों को खुलकर निशाना बनाया। 1994 तक जेकेएलएफ के चीफ के तौर पर कत्लेआम मचाने वाले यासीन मलिक ने हिंसा का रास्ता छोड़कर बातचीत के जरिये कश्मीर को आजाद कराने का फैसला लिया, पाकिस्तान ने भी यासीन मलिक को जेकेएलएफ के सर्वमान्य नेता के तौर पर मान्यता दी, तत्कालीन सरकारों ने घाटी में आतंकवाद को खत्म करने के लिए कड़े फैसले लेने की जगह हत्याओं में सीधे तौर पर शामिल रहे यासीन मलिक जैसे आतंकियों को अलगाववादी नेता के तौर पर स्थापित होने में मदद की, हालांकि, उस पर कुछ मुकदमे चलते रहे, लेकिन, यासीन मलिक को सजा देने की बजाय उसके लिए रेड कार्पेट बिछा दी गई, वामपंथी विचारधारा के एक बड़े बुद्धिजीवी वर्ग ने यासीन मलिक को हाथोंहाथ लिया, और, उसे कश्मीर से उग्रवाद को खत्म करने वाला अलगाववादी नेता बना दिया, जबकि, जेकेएलएफ पत्थरबाजी से लेकर आतंकी घटनाओं में शामिल रहा।
आपको बता दें कि यासीन मलिक जैसे कश्मीर के पूर्व आतंकी अलगाववादी नेता को कांग्रेस सरकार में पाकिस्तान के साथ बातचीत का ब्रांड एंबेसडर बनाया गया, 2006 में यूपीए सरकार में प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह ने जेकेएलएफ चीफ यासीन मलिक को पीएम आवास में बुलाकर उसके साथ चर्चा की, यासीन मलिक के साथ पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की मुस्कुराने वाली तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहे हैं, इतना ही नहीं, यासीन मलिक के साथ वामपंथी विचारधारा की लेखर अरुंधति राय की तस्वीर भी खूब वायरल हो रही है, इस तस्वीर का इस्तेमाल अप्रत्यक्ष रूप से द कश्मीर फाइल्स में भी किया गया है, आसान शब्दों में कहा जाए, तो यासीन मलिक जैसे आतंकी को दिल्ली तक पहुंचाने में ऐसे ही लोगों का हाथ रहा है, जबकि, यासीन मलिक पाकिस्तान यात्रा पर 26/11 हमले के मास्टरमाइंड रहे हाफिज सईद के साथ मुलाकात करता रहा, ऐसे में ये कहना गलत नही होगा कि भले ही यासीन मलिक ने आतंकवाद का रास्ता छोड़ दिया हो, पर वह पाकिस्तान में अपने संपर्क सूत्रों से लगातार बातचीत करता रहा, उसने खुद हिंसा का रास्ता छोड़ने के बाद कश्मीर के युवाओं को भड़काकर उग्रवाद को बढ़ावा दिया।
वहीं वामपंथी विचारधारा के कथित बुद्धिजीवी वर्ग ने यासीन मलिक को एक हीरो के तौर पर पेश किया, जो कश्मीर में मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचारों की मुखालिफत कर रहा था, कश्मीर के युवाओं को आतंकवादियों के खिलाफ अभियान चलाने पर वहां पत्थरबाजी के लिए पैसे देने तक के आरोप यासीन मलिक समेत तमाम अलगाववादी नेताओं पर लगे, पर सरकारों ने इस पर ध्यान नहीं दिया, यहां तक कि बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में यासीन मलिक ने 4 वायुसेना अधिकारियों और रिटायर्ड जज नीलकंठ गंजू की निर्मम हत्या की बात कबूल की थी। इसके बावजूद यासीन मलिक पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। इतना ही नहीं, पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के साथ मुलाकात के बाद उसने कश्मीर में शांति प्रक्रिया की बातचीत में आतंकी संगठनों को भी शामिल करने की मांग की थी, यासीन मलिक के हिसाब से आतंकी संगठनों को कश्मीर समस्या का हल निकालने में शामिल करना बहुत जरूरी था। हालाकि 2017 के बाद से ही यासीन मलिक टेरर फंडिंग के मामले में सजा काट रहा है, उसके साथ ही तमाम अलगाववादी नेताओं पर टेरर फंडिंग के मामलों पर शिकंजा कसा, वहीं, अगस्त 2019 में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने से पहले उसी साल जेकेएलएफ पर बैन लगाया था, अलगाववादी नेताओं पर शिकंजा कसने पर कथित बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों ने इसे मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचारों के तौर पर पेश किया, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने द कश्मीर फाइल्स का जिक्र करते हुए जिन अभिव्यक्ति की आजादी के झंडाबरदारों को निशाने पर लिया था, वो यही हैं। इस जानकारी के संबंध में आप लोगों की क्या प्रतिक्रियायें है। मित्रो अधिक रोचक बाते व लेटेस्ट न्यूज के लिये आप हमारे पेज से जुड़े और अपने दोस्तो को भी इस पेज से जुड़ने के लिये भी प्रेरित करें।